सरकार ने स्वयं-सुरक्षा को अमीर और शक्तिशाली नागरिकों तक सीमित किया

इस वर्ष जनवरी में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को अपनी स्वयं-सुरक्षा का अधिकार है | शर्म कि बात यह है कि इसी दौरान हमारी अपनी सरकार ने इस अधिकार को व्यावहारिक रूप से अमीर और शक्तिशाली नागरिकों तक ही सीमित करने कि ओर कदम उठाये |

स्वयं-सुरक्षा का अधिकार हर नागरिक को यह हक़ देता हैं कि वह अपने और अपनी संपति को अपराधिक हमले से बचाने के लिए पूरी शक्ति का इस्तेमाल कर सके | यह अधिकार केवल स्वयं-सुरक्षा तक ही सिमित नहीं है , यह नागरिकों को एक दुसरे कि मदद करने का भी हक़ प्रदान करता हैं | हमारे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कहा है कि भारतीय नागरिको को कायर नहीं होना चाहिए और डट कर अपराधियों का सामना करना चाहिए | यह अधिकार केवल कोर्टों और नियमों तक ही सिमित नहीं हैं , हमारे संविधान का अनुक्षेद 21 हर नागरिक के जीवन और आज़ादी के अधिकार को पूरी तरह से पहचानता हैं | ना ही यह कोई नई धाररणा है , यह अधिकार हर युग और हर सभ्यता में नागरिकों का एक मूल हक़ माना गया हैं | इस अधिकार का यह मतलब नहीं है कि सरकार हर नागरिक के जीवन, आज़ादी और अधिकारों कि सुरक्षा के उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाये, बल्कि यह उन सब अधिकारों में से है जिन की सुरक्षा का उत्तरदायित्व हर सरकार पर हैं |

नागरिकों कि हर सरकार से जो उमीदें रहती हैं, उन में से एक प्रथम उम्मीद यह है कि सरकार हर नागरिक कि जान, माल और अधिकारों कि सुरक्षा करेगी | क्या हमारे नागरिक सुरक्षित हैं ? और क्या वह सुरक्षित महसूस करतें हैं ? अगर हम 1953 – 2007 तक के हिंसक अपराधों के आंकड़ों पर नज़र डालें तो एक खोफ्नाक चित्र दिखाई पड़ता हैं , खूनी हमलों में 229.7% का इजाफा, बलात्कारों में 733.8% का इजाफा, अपहरणों में 423.9% का इजाफा, आदि | कुछ लोगों का मानना है कि हिंसक वारदात गाँव या छोटे कस्बों में ही ज्यादा संख्या में होती हैं, यह केवल एक भ्रम है | भारत के 35 मुख्य शहरों में आपने प्रान्तों से ज्यादा हिंसक घटनायें घटी हैं और राजधानी दिल्ली में तो देश कि सबसे ज्यादा बलात्कार की घटनायें रिपोर्ट होती हैं |

हम अपने बहादुर पुलिसकर्मियों का निरादर नहीं करना चाहते, मगर सच तो यह है कि भारत में जनसँख्या अनुसार पूरे संसार में सब से कम पुलिसकर्मियों कि संख्या है | पुलिसकर्मियों कि कम संख्या, उसके ऊपर अछि ट्रेनिंग न होना और ज़रूरी उपकरणों का अभाव , डिपार्टमेंट में भ्रष्टाचार और नेता और अधिकारिओं का हस्तक्षेप, इन सब के रहते कोई आश्चर्य कि बात नहीं है कि हमारी पुलीस भारतीय नागरिकों कि सुरक्षा करने में सक्षम नहीं है | जिन देशों में सबसे सक्षम पुलिस मानी जाती हैं, उनमें भी पाया गया हैं कि मोकाए वारदात पर पुलिस कभी भी समय पर नहीं पहुँच पाती | सच तो यह है कि कोई भी पुलिस फोर्स हर समय हर जगह नहीं हो सकती और रिपोर्ट के बाद जब तक वह मौके पर पहुंचते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं | पुलिस अपराध के बाद उसकी छान बीन तो कर सकती हैं, मगर यह संभव नहीं कि पुलिस हर नागरिक को अंगरक्षक मोहिया कराये |

मोकाए वारदात पर सबसे पहले पीड़ित नागरिक ही मौजूद होता हैं, इसीलिए स्वयं-सुरक्षा का अधिकार हर सभ्यता और हर युग में एक मूल अधिकार माना गया हैं |

शस्त्र और स्वयं-सुरक्षा का अधिकार
अपराधी हमेशा यह सोच कर अपराध करता है कि वह बच के निकल पायेगा | वह सोचता है कि वह पीड़ित का किसी भी तरह से लाभ उठा सकता है क्योंकि अपराधी हमले से पहले पीड़ित से अधिक ताकत (संख्या, अस्त्र शस्त्र, लिंग, आदि ) कि तैयारी कने के बाद ही वह हमला करता है | अगर हमला करने पर पीड़ित अपराधी का डट के मुकाबला कर पाए तो पाया गया है कि ज्यादातर हमलावर मोके से भाग पड़ते हैं | यह मुकाबला तभी संभव है जब अपराधी और पीड़ित की शक्ति बराबर हो | मगर दुसरी ओर पीड़ित को न तो पहले से अपराधिक हमले कि कोई सूचना होती है और न ही उसपर हमलावरों से ज्यादा तैयारी या ताकत होती है | ऐसे में पीड़ित नागरिक पर सिर्फ एक ही उपाए बचता है , और वह यह कि वह नागरिक अपने बचाव के लिए बंदूक का सही उपयोग करे | केवल बंदूक ही एक ऐसा यन्त्र है , जिसके सही उपयोग से पीड़ित नागरिक हमलावरों के ज्यादा संख्या और ताकत का डट के सामना कर सकता है | इन का सही और सुरक्षित प्रयोग कुछ ही दिनों कि ट्रेनिंग में सीखा जा सकता है | बंदूकों को हम एक तरह के बीमा कि तरह सोच सकते हैं , हम बीमा लेते समय सोचते हैं कि हमे इसका कभी प्रयोग न करना पडे – मगर समय आने पर यह हमारे सुरक्षा कवच कि तरह काम आता है | बिना बंदूकों के, बिना अपराधियों का मुकाबला करने के यंत्रों के , नागरिकों के स्वयं-सुरक्षा का अधिकार का कोई महत्व नहीं रह जाता | यह केवल रह जाते है एक कागज़ के टुकडे पर लिखे हुए कुछ शब्द |

हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को इस मूल सत्य कि अच्छी तरह से पहचान थी | पूरे स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान हर नागरिक को शस्त्र रखने के अधिकार की मांग की जाती गई | यहाँ तक कि महात्मा गाँधी ने कहा था कि ब्रिटिश राज के कूकर्मों में से सबसे बुरा कर्म इतिहास इसे ही मानेगा कि उन्होने भारतीय नागरिकों से उनका शस्त्र रखने का मूल अधिकार छीन लिया | आख़िरकार शस्त्र अधिनियम 1959 में इस अधिकार को कानूनी तौर पर मान्यता दी गई और यह सोचा गया था कि ब्रिटिश राज के 200 वर्ष कि नाइंसाफी का हो गया अंत |

लेकिन कडवा सच तो यह हैं कि 1980 के दशक के दौरान से लेकर अब तक इस शस्त्र अधिनियम में किए गय फेरबदल कि वजह से इस अधिकार को नागरिकों से दुबारा छीना जा रहा हैं | आज के समय में, किसी भी नागरिक को शस्त्र का लाइसेंस बनवाने के लिए या तो किस्सी नेता से सिफारिश या किसी अधिकारी कि जेब गरम करने कि ज़रुरत पड़ती हैं | अगर किसी नागरिक को शस्त्र लाइसेंस मिल भी जाए, सरकार कि नीति ऐसी बनी हुई हैं, कि स्वयं-सुरक्षा के लिए बनी सामान्य बन्दूक जो अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में केवल रु 5,000 से 10,000/- तक में मिल जाती हैं, वह भारत में रु 80,000 से 10 लाख, या उससे भी ज्यादा में बिकतीं हैं |

सरकार कहती रही हैं कि यह नीतियाँ शस्त्रों को बदमाशों के हाथ से दूर रखने के लिए लागू की गई हैं | जब कि सच तो यह हैं कि कोई भी बदमाश न तो लाइन में लग कर शस्त्र के लाइसेंस कि अर्जी लगा रहा हैं और न ही उन्हे इन नीतियों से हथियार खरीदने में कोई परेशानी हो रही है | जबकि आम नागरिक को पहले बाबुओं और पुलिस से जूंझकर लाइसेंस लेना पड़ता है और फिर लाइसेंसी हथियार को खरीदने के लिए बहुत सारे पैसे जुटाने पड़ते हैं, बदमाशों पर न तो लाइसेंस कि रोक टोक है और उन्हें हथियार भी बहुत कम रुपियों में मिल जाते हैं – सब को मालूम है कि देसी कट्टे केवल रु 500 में भी मिल जाते हैं | सरकार के आंकडे भी यही खुलासा करते हैं – कि अपराध कि वारदातों में लाइसेंसी हथियार का इस्तेमाल ना के बराबर है |

प्रशं यह उठता है – जब बदमाशों और आतंकवादियों के हथियारों पर कोई रोक टोक संभव नहीं, तो आम नागरिक पर यह रोक टोक क्यों ? उत्तर जितना सरल है उतना ही शर्मनाक – यह सब सिर्फ इसलिये किया जा रहा हैं ताकि जनता का ध्यान बटा कर यह बात छुपायी जा सके कि सरकार अपराध और आतंक को काबू करने में कितनी असफल है | इन नियमों का मतलब सिर्फ सब कि नज़र में धूल झोंकना हैं और इन्ही कि वजह से हमारे नागरिक अब पूरी तरह से अपराधियों के रहमोकरम पर हैं |

गैर कानूनी आदेश
आश्चर्य की बात तो यह है कि अब हमारी सरकार इन नियमों को बदल के पूरी तरहां से VIPयों के ही हक़ में करना चाहती हैं | RTI के द्वारा पता लगाया गया हैं कि 31 मार्च 2010 को केंद्रीय ग्रह मंत्रालय ने हर प्रान्त के होम डिपार्टमेंट को नई शस्त्र नीति लागू करने का एक फरमान जारी किया है | हमारे संविधान और संसद का मज़ाक बनाते हुए केंद्रीय ग्रह मंत्रालय ने संसद के बनाये हुए शस्त्र कानून को महज़ एक फरमान के द्वारा बदल दिया | इस गैर कानूनी फरमान को जरी करने के पूरे चार महीने बीतने के बाद अब सुनने में आ रहा हैं कि केंद्रीय ग्रह मंत्रालय इसे कानूनी रूप देने के लिए संसद में पेश करने कि सोच रहा हैं |

नई नीति , जिसे केंद्रीय ग्रह मंत्रालय द्वारा कानून का रूप दिया जा रहा हैं , के अनुसार किसी भी नागरिक को तब तक शस्त्र लाइसेंस नहीं दिया जायेगा , जब तक वह अपनी जान पर कोई गहरा खतरे का सबूत नहीं दे पाए | सोचने वाली बात हैं कि किसी के साथ कोई हादसे या दुर्घटना पहले बता कर तो नहीं होती | ऐसा लगता हैं कि केंद्रीय ग्रह मंत्रालय चाहता है कि अबसे सिर्फ VIPयों को ही शस्त्र लाइसेंस दिया जाये | इस नई नीति का VIP और VVIPयों कि ओर रुख सिर्फ यहीं तक सिमित नहीं हैं , नई नीति के अनुसार अब कानूनी तौर पर एक नए प्रकार का जातिवाद बनाया गया है | अबसे राज्यों के होम डिपार्टमेंट को सिर्फ नीति में निर्धारित VIP और VVIPयों को “आल इण्डिया” शस्त्र लाइसेंस जारी करने का हक़ होगा | आम नागरिक को “आल इण्डिया” शस्त्र लाइसेंस को पाने के लिए अब केंद्रीय ग्रह मंत्रालय के द्वार खटकाने पड़ेंगे , ठीक उसी तरह जैसे “प्रोहिबितेद बोर” शस्त्र लाइसेंस के लिए आजकल करना पड़ता हैं | इस नीति में और भी कई ऐसे नए नियम है जो कि सिर्फ भ्रष्टाचार को बढ़ावा और नागरिकों को परेशानी ही देंगे |

इन नीतियों से हमारे आम नागरिक अब अपराधियों और आतंकवादियों के लिए और भी आसान शिकार बन जाएंगे, मगर ऐसा लगता है कि इस सरकार को आम नागरिकों कि कोई चिंता नहीं हैं |

हमे क्यों चिंतित होना चाहिए
अगर आप को लगता हैं कि इस नई सरकारी नीति का आप पर कोई असर नहीं पड़ेगा, तो एक बार दुबारा सोचिये इन स्तिथियों पर :-
आप एक कौल सेंटर में काम करते हैं और देर रात घर आते समय आप को बदमाश घेर लेते हैं, या फिर आप एक रिटायर्ड नागरिक हैं और आप के घर में चोर घुस आते हैं | शायद आप एक गृहिणी हैं, अपने बच्चों के साथ घर पर अकेली , जब कई अनजान दरवाज़ा तोड़ के अन्दर घुस आते हैं, या शायद आप एक व्यापारी हैं और डकैत आप कि जीवन भर कि पूँजी लूटना चाहतें हैं | आप किसी बच्चे के माँ या बाप हो सकते हैं , जिस नन्हे को कोई आप कि आँखों के सामने अगवा करने कि कोशिश करता हैं , या आप कोई कुँवारी कन्या हैं , जिस पर कोई जोर जबरदस्ती करना चाहता हैं | हमारे नागरिक न जाने ऐसे कितने खतरों का सामना हर रोज़ करते हैं , और अगर ऐसी कोई घटना आप के साथ घटे तो बचाव के साधन बहुत कम हैं |

आम नागरिकों के लिए शस्त्र लाइसेंस को प्राप्त करने के तरीके को सामान्य, भ्रष्टाचार मुक्त और सरल बनाके उन को सही मायने में नागरिकों को स्वयं-सुरक्षा का अधिकार दिलाने कि जगह, हमारी सरकार शास्त्रों को केवल अमीरों और ताकतवरों तक ही सीमीत करना चाहती हैं | आम आदमी के हाथों से स्वयं-सुरक्षा के साधन छीन के उसे अपराधियों का आसान शिकार बनाया जा रहा हैं |

हम अनुमान लगा सकते हैं कि 26/11 को मुंबई में अगर चन्द नागरिकों पर अपनी स्वयं-सुरक्षा करने के लिए शस्त्र होते, तो शायद इतने मासूमों कि जाने नहीं जाती |